रघुनाथ जी





र।         "" रघुनाथ जी को कल्लू का सर्वश्रेष्ठ देवता माना जाता है कुल्लूदशहरे के अवसर पर सभी कल्लू के देवी देवता रघुनाथ जी के पास शीश निभाते हैं तथा कुल्लू दशहरे का शुभ आरंभ भी रघुनाथजी द्वारा होता है रघुनाथजी के कुल्लू दशहरा संबंधी इतिहास की जानकारी इस प्रकार है

कुल्लूदशहरा उत्सव का इतिहास करीब साढ़े तीन सौ वर्ष से अधिक पुराना है। दशहरा के आयोजन के पीछे भी एक रोचक घटना का वर्णन मिलता है। इसका आयोजन सत्रहवीं सदी में कुल्लू के राजा जगत सिंह के शासनकाल में आरंभ हुआ। राजा जगत सिंह ने वर्ष 1637 से 1662 ईस्वी तक शासन किया। उस समय कुल्लू रियासत की राजधानी नग्गर हुआ करती थी। कहा जाता है कि राजा जगत सिंह के शासनकाल में मणिकर्ण घाटी के गांव टिप्परी में एक गरीब ब् राह्मण दुर्गादत्त रहता था। उस गरीब ब्राह्मण ने राजा जगत सिंह की किसी गलतफहमी के कारण आत्मदाह कर लिया। गरीब ब्राह्मण के इस आत्मदाह का दोष राजा जगत सिंह को लगा। इससे राजा जगत सिंह को भारी ग्लानि हुई और कई इतिहासकार तो बताते हैं कि

 इस

दोष के कारण राजा को एक असाध्य रोग भी हो गया था। राजा को दी थी भगवान राम चंद्र की मूर्ति लाने की सलाह असाध्य रोग से ग्रसित राजा जगत सिंह को झीड़ी के एक पयोहारी बाबा किशन दास ने सलाह दी कि वह अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से भगवान राम चंद्र, माता सीता और रामभक्त हनुमान की मूर्ति लाकर कुल्लू के मंदिर में स्थापित करके अपना राज-पाट भगवान रघुनाथ को सौंप दे तो उन्हें ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति मिल जाएगी। इसके बाद राजा जगत सिंह ने श्री रघुनाथ जी की प्रतिमा लाने के लिए बाबा किशनदास के चेले दामोदर दास को अयोध्या भेजा। मूर्ति लाने पर राजा को मिली रोग से मुक्ति दामोदर दास वर्ष 1651 में श्री रघुनाथ जी और माता सीता की प्रतिमा लेकर गांव मकड़ाह पहुंचे। माना जाता है कि ये मूर्तियां त्रेता युग में भगवान श्रीराम के अश्वमेघ यज्ञ के दौरान बनाई गई थीं।

इतिहास: राजा को असाध्य रोग से मुक्ति दिलाने के बाद शुरू हुआ था दशहरा

कुल्लूदशहरा उत्सव का इतिहास करीब साढ़े तीन सौ वर्ष से अधिक पुराना है। दशहरा के आयोजन के पीछे भी एक रोचक घटना का वर्णन मिलता है। इसका आयोजन सत्रहवीं सदी में कुल्लू के राजा जगत सिंह के शासनकाल में आरंभ हुआ। राजा जगत सिंह ने वर्ष 1637 से 1662 ईस्वी तक शासन किया। उस समय कुल्लू रियासत की राजधानी नग्गर हुआ करती थी। कहा जाता है कि राजा जगत सिंह के शासनकाल में मणिकर्ण घाटी के गांव टिप्परी में एक गरीब ब् राह्मण दुर्गादत्त रहता था। उस गरीब ब्राह्मण ने राजा जगत सिंह की किसी गलतफहमी के कारण आत्मदाह कर लिया। गरीब ब्राह्मण के इस आत्मदाह का दोष राजा जगत सिंह को लगा। इससे राजा जगत सिंह को भारी ग्लानि हुई और कई इतिहासकार तो बताते हैं कि इस

दोष के कारण राजा को एक असाध्य रोग भी हो गया था। राजा को दी थी भगवान राम चंद्र की मूर्ति लाने की सलाह असाध्य रोग से ग्रसित राजा जगत सिंह को झीड़ी के एक पयोहारी बाबा किशन दास ने सलाह दी कि वह अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से भगवान राम चंद्र, माता सीता और रामभक्त हनुमान की मूर्ति लाकर कुल्लू के मंदिर में स्थापित करके अपना राज-पाट भगवान रघुनाथ को सौंप दे तो उन्हें ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति मिल जाएगी। इसके बाद राजा जगत सिंह ने श्री रघुनाथ जी की प्रतिमा लाने के लिए बाबा किशनदास के चेले दामोदर दास को अयोध्या भेजा। मूर्ति लाने पर राजा को मिली रोग से मुक्ति दामोदर दास वर्ष 1651 में श्री रघुनाथ जी और माता सीता की प्रतिमा लेकर गांव मकड़ाह पहुंचे। माना जाता है कि ये मूर्तियां त्रेता युग में भगवान श्रीराम के अश्वमेघ यज्ञ के दौरान बनाई गई थीं।

मणिकर्णमें रखी थी मूर्ति

1653में रघुनाथ जी की प्रतिमा को मणिकर्ण मंदिर में रखा गया और वर्ष 1660 में इसे पूरे विधि-विधान से कुल्लू के रघुनाथ मंदिर में स्थापित किया गया। राजा ने अपना सारा राज-पाट भगवान रघुनाथ जी के नाम कर दिया तथा स्वयं उनके छड़ीबदार बने। कुल्लू के 365 देवी-देवताओं ने भी श्री रघुनाथ जी को अपना ईष्ट मान लिया। इससे राजा को कुष्ट रोग से मुक्ति मिल गई और फिर शुरू हुई दशहरा उत्सव मनाने की परंपरा श्री रघुनाथ जी के सम्मान में ही राजा जगत सिंह ने वर्ष 1660 में कुल्लू में दशहरे की परंपरा आरंभ की। आज भी यह परंपरा जीवित है।

दशहरा उत्सव के दौरान रथयात्रा में उमड़ा जन सैलाब।

इतिहासकार बताते हैं कि पहली बार जब से देवी देवताओं का रिकार्ड रखा जाने लगा है उस जमाने में अब तक के सबसे अधिक देवी देवताओं के आने के रिकार्ड में 365 देवी देवताओं का आंकड़ा दर्ज है। माना जा रहा है कि दशहरा उत्सव में पहले 365 से अधिक देवी देवता आए होंगे।

अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव की दूसरी सांस्कृतिक संध्या में पंजाबी गायिका मिस पूजा मुख्य आकर्षण रहेंगी। जबकि दूसरी संध्या का आगाज भी कुल्लवी नाटी से होगा और उसके साथ साथ स्थानीय कलाकारों के साथ दूसरे राज्यों और रशिया के कलाकारों की प्रस्तुति भी आकर्षण का केंद्र रहेंगी।



मणिकर्णमें रखी थी मूर्ति


1653में रघुनाथ जी की प्रतिमा को मणिकर्ण मंदिर में रखा गया और वर्ष 1660 में इसे पूरे विधि-विधान से कुल्लू के रघुनाथ मंदिर में स्थापित किया गया। राजा ने अपना सारा राज-पाट भगवान रघुनाथ जी के नाम कर दिया तथा स्वयं उनके छड़ीबदार बने। कुल्लू के 365 देवी-देवताओं ने भी श्री रघुनाथ जी को अपना ईष्ट मान लिया। इससे राजा को कुष्ट रोग से मुक्ति मिल गई और फिर शुरू हुई दशहरा उत्सव मनाने की परंपरा श्री रघुनाथ जी के सम्मान में ही राजा जगत सिंह ने वर्ष 1660 में कुल्लू में दशहरे की परंपरा आरंभ की। आज भी यह परंपरा जीवित है।


दशहरा उत्सव के दौरान रथयात्रा में उमड़ा जन सैलाब।


इतिहासकार बताते हैं कि पहली बार जब से देवी देवताओं का रिकार्ड रखा जाने लगा है उस जमाने में अब तक के सबसे अधिक देवी देवताओं के आने के रिकार्ड में 365 देवी देवताओं का आंकड़ा दर्ज है। माना जा रहा है कि दशहरा उत्सव में पहले 365 से अधिक देवी देवता आए होंगे।


अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव की दूसरी सांस्कृतिक संध्या में पंजाबी गायिका मिस पूजा मुख्य आकर्षण रहेंगी। जबकि दूसरी संध्या का आगाज भी कुल्लवी नाटी से होगा और उसके साथ साथ स्थानीय कलाकारों के साथ दूसरे राज्यों और रशिया के कलाकारों की प्रस्तुति भी आकर्षण का केंद्र रहेंगी।

Post a Comment

Previous Post Next Post